क्या आपने कभी सुना है कि किसी देश की करेंसी इतनी बेकार हो जाए कि लोग उसे गिनने के बजाय किलो में तौलने लगें? जी हाँ, यह सच है और यह कहानी है सोमालिया (Somalia) की करेंसी “Somali Shilling” की। कभी इस देश में यही करेंसी ताक़त का प्रतीक थी, लेकिन समय के साथ हालात ऐसे बदले कि यह करेंसी कागज़ के टुकड़े जैसी हो गई।
सोमालियन शिलिंग की शुरुआत
सोमालिया ने 1960 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद अपनी आधिकारिक करेंसी Somali Shilling जारी की थी। शुरू में इसकी वैल्यू ठीक-ठाक बनी रही। लोग इसे रोज़मर्रा के लेन-देन में इस्तेमाल करते थे और इसका अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भी महत्व था।
करेंसी की गिरावट के कारण
करेंसी की वैल्यू गिरने के पीछे कई बड़े कारण थे:
- राजनीतिक अस्थिरता – सोमालिया लंबे समय तक आंतरिक संघर्ष और गृहयुद्ध से जूझता रहा।
- भ्रष्टाचार और अव्यवस्था – सरकार की नीतियों पर भरोसा नहीं रहा, जिससे आर्थिक सिस्टम चरमरा गया।
- महंगाई (Hyperinflation) – इतनी तेज़ महंगाई हुई कि करेंसी का मूल्य लगातार नीचे गिरता गया।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की कमी – आयात-निर्यात पर असर पड़ा और विदेशी करेंसी का प्रवाह बंद होने लगा।
नोटों को गिनने के बजाय तौलना
एक समय ऐसा आया कि Somali Shilling की वैल्यू इतनी कम हो गई कि लोग 1000, 2000 या 5000 शिलिंग के नोट लेकर भी कुछ खरीद नहीं पाते थे। दुकानदार और ग्राहक नोट गिनने के बजाय तराजू पर उन्हें किलो में तौलते थे।
उदाहरण के लिए, अगर किसी चीज़ की कीमत 1 डॉलर थी, तो उसके लिए पूरा झोला भर शिलिंग देना पड़ता था। यही कारण है कि इस करेंसी को “Weighed Currency” कहा जाने लगा।
विश्व की कमजोर करेंसी में स्थान
आज Somali Shilling दुनिया की सबसे कमजोर करेंसी में गिनी जाती है। इसका उदाहरण छात्रों, शोधकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों को हमेशा यह सिखाता है कि अगर किसी देश की आर्थिक नीतियाँ और राजनीतिक स्थिरता खराब हो जाए, तो करेंसी का अस्तित्व खत्म हो सकता है।
निष्कर्ष
सोमालियन शिलिंग की कहानी हमें यह सबक देती है कि करेंसी केवल कागज़ नहीं होती, यह देश की आर्थिक सेहत का आईना होती है। अगर नीतियाँ और सिस्टम सही न हों तो नोटों का ढेर भी रद्दी कागज़ जैसा बन सकता है।
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