Freeze Branding कितना खतरनाक हो सकता है? | जानवरों की त्वचा पर बर्फ से निशान!

क्या आपने कभी सुना है कि बर्फ से भी कोई जल सकता है? जी हाँ, Freeze Branding एक ऐसी तकनीक है जिसमें जानवरों को पहचानने के लिए उनकी त्वचा पर बर्फ जैसी ठंडी चीज़ों से स्थायी निशान बनाए जाते हैं। ये प्रक्रिया सुनने में तो वैज्ञानिक लगती है, लेकिन इसके पीछे छिपी सच्चाई और खतरों को जानकर आप चौंक जाएंगे।

फ्रीज़ ब्रांडिंग क्या होती है?

Freeze Branding एक प्रकार की पहचान प्रणाली है जो विशेष रूप से जानवरों के लिए उपयोग की जाती है। इसमें लिक्विड नाइट्रोजन (-160°C) या ड्राई आइस जैसे ठंडे तत्वों को धातु के एक सांचे (branding iron) के माध्यम से जानवर की त्वचा पर कुछ सेकंड तक लगाया जाता है। इससे त्वचा के बालों की जड़ें नष्ट हो जाती हैं और उस जगह के बाल सफेद रंग में उगते हैं।

Freeze Branding के खतरे

हालाँकि इसे Hot Branding से कम दर्दनाक माना जाता है, लेकिन इसके भी कई नुकसान हो सकते हैं:

1. त्वचा को स्थायी नुकसान

यदि यह प्रक्रिया अधिक समय तक की जाए या उपकरण गर्म/ठंडा न हो तो स्किन डैमेज हो सकती है।

2. जानवर को असहनीय दर्द

बर्फ से जलने पर होने वाला दर्द जानवर के लिए बेहद तकलीफदेह हो सकता है।

3. इंफेक्शन का खतरा

त्वचा पर हुए घाव अगर साफ़ न रखें जाएं तो संक्रमण हो सकता है।

4. त्वचा का रंग और बनावट बदलना

कुछ मामलों में त्वचा पर धब्बे या असमान रंग दिखाई देने लगते हैं।

Freeze Branding बनाम Hot Branding

विशेषताएँFreeze BrandingHot Branding
तापमान-160°C तक500°C तक
दर्दमध्यम, ठंड से जलनअत्यधिक, गर्म से जलन
निशान का रंगसफेद (Pigment बदलता है)गहरा काला या लाल
त्वचा पर असरबालों की जड़ें नष्टत्वचा जल जाती है

क्या यह आज भी जरूरी है?

पहले जानवरों को पहचानने के लिए यही मुख्य तरीका था, लेकिन आज RFID चिप्स, कान टैग और QR कोड जैसी आधुनिक और कम दर्दनाक तकनीकें मौजूद हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से

Freeze Branding स्किन के Melanocyte Cells (जो रंग तय करते हैं) को ठंड से नष्ट करता है, जिससे उस हिस्से के बाल सफेद हो जाते हैं और वही पहचान का चिन्ह बनता है।

नैतिक पक्ष

आज पशु अधिकार संगठनों का मानना है कि यह प्रक्रिया क्रूर है और इसे रोक देना चाहिए। कई देशों में इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध भी लगाया जा रहा है।

निष्कर्ष

Freeze Branding तकनीकी रूप से प्रभावी हो सकती है, लेकिन नैतिक और चिकित्सा दृष्टिकोण से यह जानवरों के लिए खतरनाक है। जब हमारे पास बिना दर्द के विकल्प मौजूद हैं, तो हमें उन्हें चुनना चाहिए।
जानवर भी दर्द महसूस करते हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि वो बोल नहीं सकते।

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