
जब हम आंकड़ों पर नज़र डालते हैं तो साफ दिखता है कि भारत आज बिजली उत्पादन के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है। फिर भी, गाँवों से लेकर शहरों तक बिजली कटौती आम समस्या बनी हुई है। सवाल उठता है — जब उत्पादन खपत से ज़्यादा है, तो बिजली की समस्या क्यों है?
आइए जानते हैं इसके मुख्य कारण:-
1. वितरण (Distribution) की बड़ी कमजोरी
भारत में बिजली उत्पादन तो बढ़ गया है, लेकिन वितरण नेटवर्क अभी भी बहुत पुराना और जर्जर है। कई जगह ट्रांसमिशन लाइनें टूटती हैं, बिजली लीक होती है और तकनीकी नुकसान (Technical Loss) बहुत ज़्यादा होता है।
2. क्षेत्रीय असंतुलन
बिजली का उत्पादन कुछ राज्यों में ज़्यादा होता है (जैसे छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड) जबकि खपत बड़े महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों में होती है। इस असंतुलन की वजह से सप्लाई में बाधाएं आती हैं।
3. वित्तीय संकट
बिजली कंपनियाँ घाटे में चल रही हैं। उपभोक्ताओं से पूरा पैसा वसूल नहीं हो पाता, सब्सिडी का बोझ रहता है, और सरकार का भुगतान देर से होता है। इससे नया इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में कठिनाई आती है।
4. तकनीकी हानियाँ (Technical Losses)
भारत में ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन (T&D) लॉसेज लगभग 18-20% तक होते हैं, जबकि विकसित देशों में ये सिर्फ 6-8% होते हैं। यानी, जितनी बिजली पैदा होती है, उसमें से काफी हिस्सा रास्ते में ही बर्बाद हो जाता है।

5. चोरी और अनियमितताएँ
कई इलाकों में बिजली चोरी (Illegal connections) और अनाधिकृत उपयोग एक बड़ी समस्या है। इससे सिस्टम पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और बिजली की सप्लाई बाधित होती है।
6. मांग का अचानक बढ़ना
गर्मियों में एसी, कूलर और अन्य उपकरणों के उपयोग से अचानक मांग बढ़ जाती है, जो सप्लाई चेन के हिसाब से नहीं होती, जिससे फॉल्ट्स और कटौती बढ़ती है।
7. नवीनीकरण ऊर्जा में बदलाव की चुनौतियाँ
सौर और पवन ऊर्जा जैसे नए स्रोत बढ़ रहे हैं, लेकिन इनके अनियमित उत्पादन (जैसे सूर्य डूबने के बाद सौर उत्पादन बंद) के कारण अभी भी बैकअप के लिए पारंपरिक थर्मल बिजली पर निर्भरता बनी हुई है।
निष्कर्ष
भारत में बिजली उत्पादन ज़रूर ज़्यादा हो गया है, लेकिन जब तक वितरण प्रणाली को आधुनिक नहीं बनाया जाता, तकनीकी नुकसान नहीं घटाए जाते, और चोरी को नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक बिजली संकट पूरी तरह खत्म नहीं होगा। समाधान के लिए हमें न केवल उत्पादन बढ़ाना होगा, बल्कि स्मार्ट ग्रिड्स, स्मार्ट मीटरिंग, और स्थानीय ऊर्जा भंडारण जैसी तकनीकों को तेजी से अपनाना होगा |